सीताहरण
(रघुवंशनाथम् भाग- 6+7) - बिन राम सब सून
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इसमें शूर्पणखा की दृष्टि से देखे गए राम हैं। शूर्पणखा ने जबसे राम को देखा; तब से वह उनके प्रति एकतरफा प्रेम में ऐसी खो गई कि अपनी सब सुध.बुध खो बैठी। इस उपन्यास में शूर्पणखा के मन की वेदना का बहुत ही सार्थक और मार्मिक चित्रण हुआ है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम किस प्रकार इस विकट परिस्थिति को बड़ी सहजता के साथ सँभाल रहे हैं य इसका वर्णन देखते ही बनता है। शूर्पणखा की क्रूरता और कामुकता का कहानी इस खंड में अपने चरम पर है। क्या शूर्पणखा शुरू से ही राक्षसी स्वभाव की थी? वे कौन-सी परिस्थितियाँ थीं, जिन्होंने शूर्पणखा के मन को पत्थर जैसा कठोर और तलवार जैसा धारदार बना दिया था? क्या शूर्पणखा लंका का और रावण का विनाश चाहती थी? शूर्पणखा अपने अपमान का प्रतिशोध रावण से लेना चाहती थी या राम से? विभीषण क्यों राम के पक्षधर थे और रावण के विरोधी? मंदोदरी का चरित्र कैसा था? क्यों रावण सीता का अपहरण करना चाहता था? कुंभकर्ण, मेघनाद का चरित्र कैसा था? ऐसे अनेक अलसुलझे प्रश्न हैं; जिनके घटना के हिसाब से यह उपन्यास उत्तर देता चलता है। झँरोंखे साथ-ही-साथ यह उपन्यास अपने नाम शूर्पणखा के राम के माध्यम से बहुत कुछ अनकहा कह रहा है। आइए, काम की लपटों से घिरे इस झँरोंखे से शूर्पणखा के मन में झाँकें ।
बिन राम सब सून उपन्यास में रावण के अहंकार, उसकी कामवासना, विलासी कुमार्गगामी जीवन और कुटिल बुद्धि का बहुआयामी चित्रण हुआ है। राक्षसों के राजा के रूप में रावण का लंका में क्या स्थान था? एक शक्तिशाली राष्ट्र का राजा होने पर उसकी नीति क्या थी? राम को रावण किस दृष्टि से देखता था? क्यों वह सीता का अपहरण छलपूर्वक करना चाहता था? और इसके साथ-ही-साथ युगों से उठते एक सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न का उत्तर यह उपन्यास देता है कि क्यों रावण ने सीता को एक बार भी नहीं छुआ? अनेक रावणप्रेमी इस बात को आधार बनाकर उसके चरित्रवान होने की घोषणा करते हैं। किंतु क्या वह वास्तव में चरित्रवान था? या कोई अज्ञात भय उसे सीता को छूने से रोक रहा था? यदि कोई भय था तो वह क्या था? यहाँ हम एक बात स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि लेखक ईशान महेश ने शाप के द्वारा रावण के सिर फट जाने की बात को नकार दिया है और उसके स्थान पर जो मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक उत्तर दिया है, वह इन सारी अनसुलझी गुत्थियों को सुलझा देता है। जिस समय विश्वामित्र राम को अपने यज्ञ की रक्षा के लिए दशरथ से माँग कर ले गए थे; तब से मारीच राम का षत्रु था। राम ने उसकी माँ ताड़का का वध किया था। इस प्रतिशोध की अग्नि में उसने अनेक बार राम की हत्या के प्रयत्न किए और हर बार राम ने उसको जीवित छोड़ दिया। इन सब बातों का चिंतन करने के उपरांत उसका हृदय परिवर्तन होता है और उसी समय रावण सीताहरण के लिए मारीच को अपने षड्यंत्र का एक महत्वपूर्ण अंग बनाने का आदेशात्मक प्रस्ताव देता है। उस समय मारीच के संवादों की रहस्यात्मकता देखते ही बनती है।