परीक्षा
(रघुवंशनाथम् भाग-2)
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‘परीक्षा’ ’रघुवंशनाथम्’ का दूसरा भाग है। इसकी कथावस्तु राम के चौदह वर्ष के वनवास और भरत को अयोध्या का राजा बनाए जाने के अनपेक्षित वरदान के चारों ओर घूम रही है। इस घटना को आज तक हम यूँ ही सुनकर आगे बढ़ते गए हैं ; किंतु यह उपन्यास बताता है कि यह एक ऐसी अनहोनी थी, जिसने अयोध्या के प्रत्येक मनुष्य को हिला कर रख दिया था। वे कौन से कारण थे, जिनके रहते दशरथ आपात् स्थिति में राम का राज्याभिषेक करना चाह रहे थे? वह कौन-सी नकारात्मक शक्ति थी, जिसने कैकेयी को अपने पुत्र भरत से भी प्रिय लगनेवाले श्रीराम को वनवास देने के लिए बाध्य किया? सारी अयोध्या को यह घटना ऐसा घाव देकर गई, जिसकी पीड़ा सभी के लिए असहनीय रही। रामकथा के अनेक अनछुए प्यारे पात्रों के दिव्य रूप को, यह उपन्यास किसी स्वप्नलोक के समान दिखाने में सफल हुआ है। राम और केवट का अति संवेदनशील प्रसंग इस उपन्यास में अपने गहरे रहस्यात्मक रूप में उभर कर सामने आया है। केवट को राम के परमात्मा रूप का पता कैसे चला? इसका उद्घाटन इस उपन्यास में देखते ही बनता है। दशरथ का विलाप तथा अन्य अनेक मार्मिक तथा हृदय को छू जानेवाले प्रसंग इस उपन्यास में बहुत ही खूबसूरती के साथ पिरोए हुए हैं। इस उपन्यास के शिल्प ने श्रीराम के सौंदर्य की प्रतिमा को भक्तों और कथा-प्रेमियों के लिए भावपूर्ण होकर उद्घाटित किया है। यह एक ऐसी रचना है जिसे पढ़कर आपको ऐसा लगेगा जैसे आप किसी दिव्य जगत् की सैर करके आए हैं या किसी रेगिस्तान में मीठे जल का कोई सरोवर आपको मिल गया है।