वन-वन में राम
(रघुवंशनाथम् भाग- 4+5) - चित्रकूट के घाट पर + वन-वन में राम
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इस उपन्यास में भरत के द्वारा श्रीराम को चित्रकूट से अयोध्या लौटाने के विभिन्न प्रयासों और उपायों का मार्मिक चित्रण है। भरत का राम के पास अयोध्या के अति विशिष्ट जनों के साथ पहुँचना तथा उनको अयोध्या लौटने के लिए अनुनय-विनय करना, विलाप करना तथा अपने निर्दोष होने की बात कहना-ये सभी प्रसंग इस उपन्यास के प्राण है। इस खंड में चित्रकूट को त्यागकर सीता और लक्ष्मण के साथ श्रीराम का वनों की गहराइयों में प्रवेश आरंभ हो जाता है। वनवास की इस यात्रा में राम राक्षसों के आतंक और अत्याचार को अपनी आँखों से देखते हैं। वे देखते हैं कि राक्षसों के आतंक के कारण समाज का ऋषि, वनवासी और आदिवासी वर्ग त्रस्त और भयभीत है। राम हृदय से उनके कष्ट और दुखों को अनुभव करते हुए हैं। वे यह स्पष्टतापूर्वक देख रहे हैं कि वह क्षत्रिय समाज जिसे जनमानस की रक्षा का कार्य सौंपा गया था-वह या तो राक्षसों के हाथों बिक चुका है या उससे भयभीत हो गया है। ऐसे में वे धरती से राक्षसों के नाश की प्रतिज्ञा करते हैं। इस खंड में राक्षसों के अत्याचार और राम के द्वारा उस अत्याचार के प्रतिकार तथा उनकी तेजस्विता का अति सार्थक चित्रण हुआ है। इन सारी संघर्षपूर्ण और भयावह परिस्थितियों में भी सीता, राम और लक्ष्मण के वैचारिक और हास्यपूर्ण संवादों से यह उपन्यास सुगंधित है।
एक सहजए स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि राम 14 वर्ष वनों में रहे तो उन वर्षों में उन्होंने वनों में क्या किया। किस प्रकार वे जीवन व्यतीत करते थे। कैसा उनका रहन-सहन होता था। किन-किन लोगों से मिलते थे। क्या दृश्य देखते थे। किस प्रकार का भोजन करते थे। वनों के लोगों का उनके प्रति क्या दृष्टिकोण था। ऐसे ही बहुत सारे प्रश्न हमारे सामने मुँह बाए खड़े होते हैं। यह बात सदियों से चर्चा का विषय रही है कि क्या लक्ष्मण विवाहित थे? इस खंड में इस बात का सटीक उत्तर दिया गया है। लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला के द्वारा की जा रही तपस्या के माध्यम से पाठक इस बात के मर्म को जान सकेंगे। भरत की पत्नी माण्डवी, एक सामान्य राजपुत्री और पत्नी के समान भरत को उनके संकल्प से डिगाना चाहती है; किंतु भरत अपने उत्तरों के माध्यम से उसे सहज कर देते हैं। वनों में राम और सीता की बातचीत अति महत्वपूर्ण है। सीता के माध्यम से उन प्रश्नों को पूछा गया है जो अनेक लोग सदियों से राम के संबंध में पूछते आए हैं कि उन्होंने ऐसा क्यों किया? वैसा क्यों किया? उन सभी प्रश्नों के जो उत्तर राम देते हैं, उनको देखकर यही लगता है कि राम के अतिरिक्त ऐसा उत्तर कोई अन्य दे ही नहीं सकता। इस उपन्यास में राम के व्यक्तित्व को देखकर पता चलता है कि वास्तविक वीर कैसा होता है? सच्चा क्षत्रिय कौन होता है? षस्त्र धारण करने का अधिकारी कौन है? इन सभी प्रश्नों के उत्तरों को देता हुआ, यह उपन्यास आगे की यात्रा पर निकलता है। आइए, हम भी राम के साथ वन-वन डोलें।